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Sunday, June 25, 2017

अति महत्वपूर्ण लेख (artical) करंट अफेयर्स आधारित

◆ क्या है जीएसटी?
जीएसटी का पूरा नाम है गुड्स एंड सर्विस टैक्स। यह एक अप्रत्यक्ष कर (इंडायरेक्ट टैक्स) है। जीएसटी के तहत वस्तुओं और सेवाओं पर पूरे देश में एक समान टैक्स लगाया जाता है। जीएसटी लागू होने से पहले वस्तुओं और सेवाओं पर केंद्र और राज्यों द्वारा अलग-अलग प्रकार के कई टैक्स लगाये जाते थे। इन टैक्स में प्रमुख थे: सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स, एडिशनल कस्टम ड्यूटी (सीवीडी), स्पेशल एडिशनल ड्यूटी ऑफ कस्टम (एसएडी), वैट / सेल्स टैक्स, सेंट्रल सेल्स टैक्स, मनोरंजन टैक्स, ऑक्ट्रॉय एंड एंट्री टैक्स, परचेज टैक्स, लक्ज़री टैक्स, आदि। 
1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू होने के बाद से ये सभी टैक्स ख़त्म हो गये और इनकी जगह पूरे देश में  सिर्फ एक टैक्स ‘जीएसटी’ लगने लगा। यानी “एक देश, एक कर, एक बाजार”।


कितने तरह के हैं जीएसटी
जीएसटी तीन तरह के हैं:

सीजीएसटी (सेंट्रल जीएसटी): सीजीएसटी, यानी सेंट्रल जीएसटी, जिसे केंद्र सरकार वसूल करती है।
एसजीएसटी (स्टेट जीएसटी): एसजीएसटी, यानी स्टेट जीएसटी, जिसे राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूल करती है।
आईजीएसटी (इंटीग्रेटेड जीएसटी): कोई कारोबार अगर एक से अधिक राज्यों के बीच होता है तो उस पर आईजीएसटी, यानी इंटीग्रेटेड जीएसटी वसूल किया जाता है। इसे केंद्र सरकार वसूल करती है और सम्बंधित राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जाता है।

जीएसटी के लिए संविधान संशोधन
जीएसटी संविधान संशोधन से पूर्व भारतीय संविधान के अनुसार केंद्र और राज्य सरकारों को अपने हिसाब से वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार था। मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर टैक्स का अधिकार राज्य सरकार को और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास था। इस कारण देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह प्रकार के टैक्स लागू थे। इससे देश की टैक्स व्यवस्था बहुत ही जटिल हो गयी थी। कंपनियों और छोटे व्यवसायों के लिए विभिन्न प्रकार के टैक्स कानूनों का पालन करना भी मुश्किल होता था। इस जटिल व्यवस्था को हल करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने 122वां संविधान संशोधन विधेयक (भारतीय संविधान के अनुछेद 246, 248 एवं 268 इत्यादि में संशोधन हेतु) दिसंबर, 2014 में संसद में पेश किया। इस संशोधन विधेयक के मुताबिक पूरे राष्ट्र में जीएसटी के तहत सभी तरह की सेवाओं और वस्तुओं/उत्पादों पर सामान टैक्स प्रणाली लागू करने का प्रावधान किया गया। इस विधेयक (122वां संविधान संशोधन विधेयक) को संसद की मंजूरी मिल जाने के बाद यह भारतीय संविधान का एक सौ प्रथम (101वां) संशोधन हो गया।

जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को पास करने की संवैधानिक प्रक्रिया
जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को पास कराने के लिए निम्नलिखित संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक था:

लोकसभा की मंजूरी
राज्यसभा की मंजूरी
सभी 29 राज्यों में से (आधे से अधिक राज्यों यानी) 15 राज्यों की विधानसभा की मंजूरी।
राष्ट्रपति की मंजूरी।
जीएसटी का इतिहास
पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा किये गये प्रयास
भारत में जीएसटी का विचार अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा सन् 2000 में लाया गया। सरकार के दोनों सदनों में बहुमत नहीं होने की वजह से पारित नहीं हो सका।
यूपीए सरकार के तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदम्बरम द्वारा फरवरी, 2007 में ठोस शुरुआत करते हुए मई, 2007 में जीएसटी के लिए राज्यों के वित्तमंत्रियों की संयुक्त समिति का गठन किया। राज्यों के बीच विरोधाभास होने पर अप्रैल, 2010 से कांग्रेस सरकार इसे लागू कराने में विफल रही।
तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा मार्च, 2011 में 115वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जो गठबंधन सरकार के युग में विपक्ष के विरोध की वजह से पारित नहीं हो सका।
वर्तमान सरकार के प्रयास
देश में जीएसटी लागू करने के लिए मोदी सरकार ने 122वां संविधान संशोधन विधेयक (अनुछेद 246, 248 एवं 268 इत्यादि में संशोधन) दिसंबर, 2014 में संसद में पेश किया।
इस संशोधन विधेयक को लोकसभा ने द्वारा मई, 2015 में पारित कर दिया।
4 अगस्त, 2016 को राज्यसभा ने भी जीएसटी संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
जीएसटी के लिए संविधान संशोधन विधेयक के खिलाफ एक भी वोट नहीं पड़ा यानी पूर्ण बहुमत से जीएसटी विधेयक पास हो गया।
लोकसभा और राज्यसभा में जीएसटी बिल पारित हो जाने के बाद जीएसटी को लागू करने के लिए अगला कदम था (आधे से अधिक यानी) 15 राज्यों की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदन।
25 अगस्त, 2016 को जीएसटी के लिए 122वें संविधान संशोधन विधेयक का अनुमोदन करने वाला देश का पहला राज्‍य असम बना। इसके बाद बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, असम, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, नागालैंड, मिजोरम, तेलंगाना, हरियाणा, महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा की विधान सभाओं सहित कुल 19 राज्यों ने जीएसटी विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी।
चुकि दोनों सदनों द्वारा इस संशोधन विधेयक के पारित कर देने के बाद सरकार द्वारा विधेयक में कुछ और संशोधन किये गये जिसके लिए सरकार ने विधेयक को पुनः लोकसभा में 29 मार्च 2017 को पास कराया।
लोकसभा से पारित होने के बाद इस विधेयक को 6 अप्रैल 2017 को राज्यसभा ने भी पारित कर दिया। इस बार इस विधेयक को धन विधेयक के रूप में पेश किया गया था इसलिए भारतीय संविधान के अनुसार राज्य सभा में पारित होना या न होना महज एक औपचारिकता भर थी।
13 अप्रैल 2017 को इस विधेयक को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी मिल गयी जिसके बाद 122वें संविधान संशोधन विधेयक को पूर्ण रूप से मंजूरी मिल गयी। यह भारतीय संविधान का 101वां संशोधन है।
21 जून 2017 तक जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सभी 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) कानून को पारित कर दिया है।
दो राज्यों पश्चिम बंगाल और केरल ने जहां इस कानून को लेकर अध्यादेश जारी किया है, वहीं शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं ने ‘राज्य जीएसटी कानून’ को पारित किया है।
वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) 1 जुलाई से जम्मू काश्मीर को छोड़ पूरे देश में लागू हो गया। जीएसीटी लागू करने के लिए 30 जून को आधी रात में संसद के सेंट्रल हॉल में विशेष सत्र का आयोजन किया गया जिसमे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बटन दबाकर जीएसीटी लागू किया।
जीएसटी परिषद् का गठन और कार्य
विधेयक में जीएसटी का मसौदा तैयार करने के लिए जीएसटी परिषद् गठित करने का प्रावधान किया गया है। इस मसौदे के आधार पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की 22 अक्टूबर 2016 को हुई बैठक में जीएसटी परिषद के गठन को मंजूरी दी गई।
जीएसटी प्रणाली में टैक्स की दर तथा उसकी वसूली के तौर-तरीके निर्धारित करने का अधिकार जीएसटी परिषद् के पास है।
देश के वित्त मंत्री को जीएसटी परिषद् के पदेन अध्यक्ष होंगे। वर्तमान में अरुण जेटली (जीएसटी परिषद् का प्रथम अध्यक्ष) की अध्यक्षता में इस परिषद का गठन किया गया है।
इस परिषद में सभी 29 राज्य और संघ शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि हैं। इस परिषद में सदस्य के तौर पर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री के अलावा राज्यों के वित्त मंत्री भी शामिल हैं।
जीएसटी परिषद् में केंद्र का एक तिहाई मत होता है। जबकि दो तिहाई मत राज्यों का होता है। किसी भी सहमति पर पहुंचने के लिए तीन चौथाई बहुमत जरूरी होगा।
जीएसटी परिषद की श्रीनगर में 18-19 मई 2017 को आयोजित 14वीं बैठक में कुल 1,211 वस्तुओं में से छह को छोड़कर अन्य के लिए कर की दरों का निर्धारण किया गया।
जीएसटी परिषद की नई दिल्ली में 3 जून 2017 को आयोजित 15वीं बैठक में बची हुई छह वस्तुओं की जीएसटी दर तय कर दी है और इसके साथ ही सभी वस्तुओं और सेवाओं की दरें तय हो गई।

जीएसटी व्यवस्था में टैक्स की दर
जीएसटी व्यवस्था में सभी वस्तुओं और सेवाओं पर टैक्स की दरों को 5 स्लैब में विभक्त किया गया है। 0%, 5%, 12%, 18% और 28%। खाने-पीने की अहम चीजों पर 0% टैक्स होगा जबकि नुकसानदेह या लक्जरी वाली चीज़ों पर अधिक टैक्स रखा गया है।

0 प्रतिशत टैक्स (कोई टैक्स नहीं): जूट, ताजा मीट, मछली, चिकन, अंडा, दूध, छाछ, दही, प्राकृतिक शहद, ताजा फल, सब्जियां, आटा, बेसन, ब्रेड, प्रसाद, नमक, बिंदी, सिंदूर, स्टांप पेपर, मुद्रित किताबें, अखबार, चूड़ियां, हैंडलूम, अनाज, काजल, बच्चों की ड्राइंग, कलर बुक इत्यादि। एक हजार रुपये से कम कीमत वाले होटल और लॉज इत्यादि।
5 प्रतिशत टैक्स: पैक्ड फूड, 500 रुपये से कम मूल्य के जूते-चप्पल, मिल्क पाउडर, ब्रांडेड पनीर, कॉफी, चाय, मसाले, पिज्जा ब्रेड, साबूदाना, कोयला, दवाएं, काजू, किसमिस, बर्फ, बायो गैस, इंसूलीन, अगरबत्ती, पतंग, डाक टिकट इत्यादि। रेलवे, हवाई जहाज, छोटे रेस्तरां इत्यादि।
12 प्रतिशत टैक्स: एक हजार रुपये से ऊपर के परिधान, मक्खन, चीज, घी, सॉसेज, दंत मंजन, सेलफोन, केचअप, चम्मच, कांटे, चश्मे, ताश, कैरम बोर्ड, छाता, आयर्वेदिक दवाएं, सिलाई मशीन, नमकीन, भुजिया इत्यादि। राज्य सरकार द्वारा चलाई जाने वाली लाटरियां, नॉन-एसी होटल, बिजनेस क्लास एयर टिकट, खाद इत्यादि।
18 प्रतिशत टैक्स: सबसे ज्यादा वस्तुएं इस वर्ग में रखी गई हैं। 500 रुपये से अधिक के जूते-चप्पल, सॉफ्टवेयर, बीड़ी पत्ता, सभी तरह के बिस्किट, पास्ता, कॉर्नफ्लेक्स, मिनरल वाटर, एनवेलप, नोटबुक, स्टील के सामान, कैमरा, स्पीकर, मॉनिटर, काजल पेंसिल, एलुमिनियम फॉयल इत्यादि। शराब परोसने वाले एसी होटल, टेलीकॉम सेवाएं, आईटी सेवाएं, ब्रांडेड कपड़े, वित्तीय सेवाएं इत्यादि।
28 प्रतिशत टैक्स: बीड़ी, चूइंग गम, बगैर कोकोआ वाले चाकलेट, पान मसाला, पेंट, डियोड्रेंट, शेविंग क्रीम, शैम्पू, वाशिंग मशीन, ऑटो

◆विजन-2035 : 20 साल में क्या होना चाहेंगे हम?
देश के प्रौद्योगिकी थिंक टैंक ने तैयार किया टेक्नोलॉजी विजन-2035

पानी की लीकेज हमारे पेयजल आपूर्ति की एक बड़ी समस्या है। काश कि पानी की पाइपलाइनें भी हमारे शरीर की नसों की तरह होतीं। जैसे हमारे शरीर में कट लगने पर निकलने वाले खून को रोकने के लिए खून खुद ही थक्का जमा लेता है, वैसे ही पाइप खुद की मरम्मत कर ले तो कितना अच्छा रहे। इसी तरह सड़क पर दरार व गड्ढे बन जाएं तो वे खुद ही उसे ठीक कर लें जैसे कोई घाव भर जाता है। आपको भूख लगी है और शरीर को जिस पोषक तत्व की जरूरत है और जैसा स्वाद आप चाहते हैं वही आपको आहार में मिले तो कितना अच्छा हो। सड़क पर जाम मिले तो कार हवा में उड़ने लगे, रास्ते में पानी भरा मिले तो तैरने लगे।
हमारी चाहतों की ये कुछेक मिसालें हैं जिन्हें देश के टेक्नोलॉजी विजन-2035 में शामिल किया गया है। इसके लिए सेल्फ हीलिंग पाइप्स, सेल्फ हीलिंग रोड्स, इंटरएक्टिव स्मार्ट फूड और एंफिबियन फ्लाईंग कार जैसी प्रौद्योगिकी के विकल्प भी विजन में पेश किए गए हैं। आज से दो दशक बाद भारतीय क्या होना चाहेंगे? इस सोच को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत आने वाली संस्था टेक्नोलॉजी इंफोर्मेशन फारकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (टाईफैक) ने ‘टेक्नोलॉजी विजन-2035’ दस्तावेज तैयार किया है। पिछले साल मैसूर में हुए इंडियन साइंस कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जारी किया था। टाईफैक के चेयरमैन व न्यूक्लियर साइंटिस्ट प्रो. अनिल काकोडकर के निर्देशन में तैयार हुए इस दस्तावेज में देश की आकांक्षाओं की पहचान करने के साथ ही उन्हें पूरा करने वाले प्रौद्योगिकी विकल्पों का खाका पेश किया गया है। इससे पहले 1996 में टाईफैक ने विजन-2020 तैयार किया था, तब डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टाईफैक के चेयरमैन थे।

प्रो. काकोडकर के मुताबिक विजन-2035 देश के बारे में भविष्यवाणी, दूरदर्शी परिकल्पनाओं और मनसूबों का दस्तावेज नहीं है, यह दस्तावेज बताता है कि अभी हम कहां है? अगले दो दशक में हम कहां जाना चाहते हैं? यहां से वहां पहुंचने का श्रेष्ठ तरीका क्या है? कौन-सी तकनीक हमें लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद कर सकती है? इस रास्ते में क्या-क्या चुनौतियां हैं और क्या-क्या तकनीकी बाधाएं आ सकती हैं? इस दस्तावेज का विजन स्टेटमेंट ही ‘प्रौद्योगिकी के जरिए हर भारतीय की सुरक्षा सुनिश्चित करना, समृद्धि बढ़ाना और पहचान को मजबूत करना है।’

टाईफैक के मुताबिक डॉ. कलाम के निर्देशन में तैयार हुए टेक्नोलॉजी विजन-2020 में 1996 का दृष्टिकोण था और विजन 2035 में 2014-15 का दृष्टिकोण है। विजन को 2035 को तैयार करने में करीब तीन वर्ष लगे और 5000 से ज्यादा विशेषज्ञों का परामर्श लिया गया। यह विजन दस्तावेज देश के 12 प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ध्यान में रखकर तैयार हुआ है।

साफ हवा व शुद्ध पीने का पानी
ड्यू हार्वेंस्टिंग : वाटर हार्वेस्टिंग तो आपने सुना होगा, विज्ञानी अब ड्यू (ओस) हार्वेस्टिंग की तकनीक लैब से फील्ड तक लाने में जुटे हैं। हालांकि अभी इसमें टारगेट रिसर्च की जरूरत है।
सेल्फ हीलिंग पाइप्स : पाइप में टूटफूट को पानी में पॉलीमैरिक व इलास्टोमैरिक पदार्थ की मदद से मरम्मत करने की तकनीक की परिकल्पना की जा रही है।
इन-सीटू वाटर प्यूरिफिकेशन इन पाइपलाइन : बहते पानी को ही उपचारित करने की तकनीक के सिलसिले में टारगेटेड रिसर्च की बात की जा रही है।

खाद्य व पोषण सुरक्षा
इंटरएक्टिव व स्मार्ट फूड : शरीर को जिस पोषक तत्व की जरूरत है और आप जो स्वाद पसंद करते हैं, उसके मुताबिक ऑन डिमांड फूड भोजन की परिकल्पना नैनो-कैप्सूल में मौजूद फ्लैवर व विटामिन के आधार पर की जा रही है।
ई-सेंसिंग : किसी भी आहार की गंध व स्वाद ई-नोज व ई-टंग के जरिए महसूस करने की तकनीक भी भविष्य की प्रौद्योगिकी है।

यूनीवर्सल हेल्थकेयर एंड पब्लिक हाइजिन
नैनो-रोबोट्स : कोशिका के आकार के रोबोट्स जो शरीर में अकेले या वैसे ही हजारों रोबोट की मदद से तय काम करें।
मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट वैक्सीन : मलेरिया व टीबी जैसी बीमारियां मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट होने के चलते फिर से फैल रही है, उनके लिए नई वैक्सीन के लिए शोध होगा।
रीजेनरेटिव थैरेपी : छिपकली की पूंछ कट जाती है तो फिर से पैदा होती है। लेकिन मनुष्य के शरीर में ऐसा नहीं होता। अब ऐसे उपचार परिकल्पना की जा रही है कि अंग कटने पर वह अंग फिर से उग आए।
सातों दिन चौबीस घंटे बिजली
माइक्रोबियल फ्यूल सेल : इस सेल में गंदे पानी को इस्तेमाल करके इलेक्ट्रोकैमिकली एक्टिव बैक्टिरिया के मेटाबोलिक गतिविधि के जरिए बिजली पैदा की जाती है।
थोरियम से बिजली : फास्ट ब्रीडर रिएक्टर के जरिए थोरियम से बिजली बनाने के लिए टारगेटेड रिसर्च की जरूरत बताई गई है।
गैस हाइड्रेट : बर्फ-पानी का एक पिंजड़े जैसी जाली जिसके अंदर मीथेन के अणु फंसे हो जो गर्म होने या दबाव कम होने पर पानी व प्राकृतिक गैस में बदल जाएं।
पर्यावास
एंटीग्रेविटी डिवाइस : गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत काम करने वाले ऐसे उपकरण जो निर्माण में मददगार हो सकें। यह प्रौद्योगिकी अभी परिकल्पना के स्तर पर है।
बायो कंक्रीट : सेल्फ हीलिंग कंक्रीट खुद ब खुद दरारों को भर सकते हैं यह इनमें मौजूद एक खास किस्म के बैक्टिरिया के जरिए होता है। इस पर रिसर्च भी चल रहा है और परिकल्पनाएं भी।

शिक्षा
ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस : ऐसी प्रौद्योगिकी जिसमें दिमागी तरंगों से ही कंप्यूटर व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नियंत्रित किया जाता है। रियल टाइम ट्रांसलेशन : शिक्षा को सबके लिए सुलभ बनाने के लिए जरूरी होगा कि वह हर भारतीय भाषा में तत्काल उपलब्ध हो।

सुरक्षित व तेज आवागमन
एंफिबियन एंड फ्लाइंग व्हीकल : शहर के जाम को देखते हुए ऐसे उभयवाहनों के शोध को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। 
इंटेलीजेंट व सेल्फ हीलिंग रोड्स : सड़क पर दरारें व गड्ढों को भरने के लिए सेल्फ हीलिंग रोड्स की परिकल्पना की गई है। जे-पोड,
हाइपर लूप : यह आवागमन के लिए हाई स्पीड प्रेशर ट्यूब की तकनीक है।
मैगलेव : रेल ट्रैक को बिना छुए मैग्नेट की मदद से दौड़ती ट्रेन की तकनीक है।
बॉक्स-1
2035 में भारतीयों का जीवन
-शून्य ड्रापआउट, शत-प्रतिशत साक्षरता, उपकरणों व मशीनों के इस्तेमाल की कुशलता।
-हर घर को पाइप से पीने के पानी की आपूर्ति।
-हर ग्राम पंचायत में प्राइमरी हेल्थ सेंटर, हर जिले में एयर एंबूलैंस व ट्रामा केयर की सुविधा के साथ मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल।
-कोई भी भारतीय कुपोषण का शिकार नहीं, महिला व बच्चे एनिमिया मुक्त।
-बच्चे को जन्म देते समय माता की मृत्युदर प्रति एक लाख में 15 से भी कम।
-पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर प्रति एक हजार में 6 से कम।
-भोजन की शून्य बर्बादी।
-शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व सेवा से जुड़ी हर नागरिक की डिजिटल पहचान।
-हर पंचायत में हैलीपेड।
-देश के किसी भी स्थान की राष्ट्रीय राजधानी से दूरी आठ घंटे, प्रादेशिक राजधानी से दूरी 5 घंटे और जिला मुख्यालय से दूरी तीन घंटे से ज्यादा नहीं हो। किसी भी मेट्रोपॉलिटन में दो स्थान की दूरी महज एक घंटे।
-पैदल यात्रियों के शून्य सड़क हादसे।
-घर से एक किलोमीटर की दूरी पर सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता। -तेज व त्रुटिहीन क्रिमिनल इंवेस्टिगेशन।
-देश में सर्वत्र इंटरनेट की उपलब्धता।
-राष्ट्रीय स्तर पर 1000 गीगावाट बिजली का उत्पादन, इसमें से 50 फीसदी रिन्युअल (पानी, हवा व सौर) संसाधनों से।
-ट्रांसमिशन व वितरण की हानि 3 फीसदी से भी कम। -30 फीसदी इवारे में वन क्षेत्र।
-शून्य झोपड़पट्टी। -चुनाव में सुनिश्चित सहभागिता।

बॉक्स-2
2035 के लिए महाचुनौतियां -पोषण सुरक्षा गारंटी
-सभी नदियों व जलाशयों में पानी की मात्रा व गुणवत्ता सुनिश्चित करना
-तेजी से घट रहे संसाधनों की सुरक्षा
-लर्नर सेंट्रिक, लैंग्वेज न्यूट्रल और सबके लिए उपलब्ध समग्र शिक्षा
-क्लाइमेंट पैटर्न के अनुकूल होना
-कोयला, तेल व गैस ईंधनों के बिना मेक इन इंडिया
-लेह व तवांग तक रेलवे लाइन बिछाना

-इको-फ्रेंडली कचरा प्रबंधन

◆केन्‍द्रीय गृह सचिव श्री राजीव महर्षि ने आईटीबीपी के पर्वत धौलागिरी-। अभियान के सदस्‍यों की अगवानी की 

       केन्‍द्रीय गृह सचिव श्री राजीव महर्षि और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के महानिदेशक श्री कृष्‍ण चौधरी ने 27 जून 2017 यहां स्थित मुख्‍यालय में आईटीबीपी के प्रथम पर्वत धौलागिरी-1 (8167 मीटर) अंतर्राष्‍ट्रीय पर्वतारोहण अभियान-2017 के सदस्‍यों की अगवानी की।  पर्वतारोहण में आईटीबीपी के योगदान एवं उपलब्धियों की सराहना करते हुए श्री महर्षि ने इस अभियान के नेता और टीम के सदस्‍यों को बधाई दी।

      श्री महर्षि ने कहा कि आईटीबीपी पर्वतों से जुड़ा प्रशिक्षण प्राप्‍त करने वाला अनूठा बल है। उन्‍होंने यह भी कहा कि हिमालय पर्वत के आसपास काम करने की जो दुर्गम स्थितियां होती हैं उनसे इस बल के क‍र्मियों के पर्वतारोहण कौशल को परखने में मदद मिलती है। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि यह बल भविष्‍य में भी पर्वतारोहण के क्षेत्र में उल्‍लेखनीय योगदान देगा एवं देश के नाम कई और उपलब्धियां हासिल करेगा। आईटीबीपी के महानिदेशक श्री कृष्‍ण चौधरी ने इस सफल अभियान का उल्‍लेख करते हुए कहा कि आईटीबीपी के छह पर्वतारोही धौलागिरी-1 की चोटी पर पहुंचने में कामयाब रहे हैं, जो इस बल द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया इस तरह का प्रथम मिशन है। इस अभियान के दौरान पर्वतारोहण टीम के सदस्‍यों को तरह-तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कमांडेंट श्री अर्जुन सिंह ने 25 सदस्‍यीय पर्वतारोहण टीम की अगुवाई की।

पर्वत धौलागिरी-1 दुनिया की सातवीं सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी है और यह नेपाल में अवस्थित है।

इस अभियान को श्री महर्षि और श्री चौधरी द्वारा 10 मार्च, 2017 को इस बल के मुख्‍यालय से झंडी दिखाकर रवाना किया गया था। आईटीबीपी ने अब तक 207 पर्वतारोहण अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा किया है, जो कि एक अनोखा रिकॉर्ड है।
पीएसएलवी-सी38 ने सफलतापूर्वक एक साथ प्रक्षेपित किए 31 उपग्रह
इसरो ने 23 जून 2017 को  अपने प्रमुख रॉकेट प्रक्षेपण यान पीएसएलवी से 712 किलोग्राम के कार्टोसैट-2 श्रृंखला के एक उपग्रह और 30 नैनो उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया। प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। यह पीएसएलवी का लगातार 39वां सफल मिशन था। पीएसएलवी-सी38 योजना के अनुसार पहले लॉन्च पैड से सुबह नौ बजकर 29 मिनट पर उड़ा और कुछ मिनटों बाद इसने उपग्रहों को कक्षा में प्रक्षेपित कर दिया। पीएसएलवी द्वारा लॉन्च कुल भारतीय उपग्रहों की संख्या अब 48 हो गई है। आने वाले दिनों में उपग्रह अपने पैनक्रोमैटिक (ब्लैक एंड व्हाइट) और मल्टीस्पेक्ट्रल (कलर) कैमरों की मदद से कई तरह की रिमोट सेंसिंग सेवाएं देगा। पीएसएलवी के साथ गए उपग्रहों में एक नैनो उपग्रह तमिलनाडु स्थित कन्याकुमारी जिले की नूरुल इस्लाम यूनिवसर्टिी द्वारा डिजाइन और विकसित किया गया। यह एनआईयूसैट फसलों के निरीक्षण और आपदा प्रबंधन के सहयोगी अनुप्रयोगों के लिए तस्वीरें उपलब्ध करवाएगा। दो भारतीय उपग्रहों के अलावा पीएसएलवी के साथ गए 29 नैनो उपग्रह 14 देशों के हैं। ये देश हैं- ऑस्ट्रिया (1) , बेल्जियम (3), चिली (1), चेक रिपब्लिक (1), फिनलैंड (1), फ्रांस (1), जर्मनी (1), इटली (3), जापान (1), लातविया (1), लिथुआनिया (1), स्लोवाकिया (1), ब्रिटेन (3) और अमेरिका (10)। आज के सफल प्रक्षेपण के साथ विदेशों से भारत के पीएसएलवी द्वारा कक्षा में स्थापित किए गए ग्राहक उपग्रहों की कुल संख्या 209 पहुंच गई है।

◆साइबर अपराध मामले अब पॉक्सो ई-बाक्स में दर्ज किये जा सकते हैं| 
साइबर अपराध के शिकार बच्चे अब अपनी शिकायत राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के पॉक्सो ई-बाक्स में दर्ज करा सकते हैं। बच्चों के साथ साइबर अपराध में वृद्धि को देखते हुए एनसीपीसीआर ने अब पोक्सो के दायरे को बढ़ा दिया है ताकि साइबर धमकी, साइबर तरीके से पीछा करना, चित्रों की मार्फिंग, बाल अश्लील साहित्य की समस्या से निपटा जा सके। साइबर अपराध के शिकार बच्चें स्वयं या उनके मित्र, माता-पिता, संबंधी या अभिभावक आयोग की वेबसाइट www.ncpcr.gov.in पर उपलब्ध ई-बाक्स बटन को दबाकर शिकायत दर्ज कर सकते हैं। वे अपनी शिकायतें ईमेल pocsoebox-ncpcr@gov.in या मोबाइल नम्बर 9868235077 पर भी दर्ज करा सकते हैं।
पॉक्सो ई-बाक्स बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम 2012 के अंतर्गत बच्चों के यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराने का सहज और सीधा माध्यम है एनसीपीसीआर द्वारा विकसित पॉक्सो ई-बाक्स पिछले वर्ष महिला और बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका संजय गांधी ने लांच किया था।

◆भारतीय रेल का एवरेस्ट : चेनाब पुल
       भारतीय रेलवे जल्द ही दुनिया में एक नया इतिहास रचने जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में शिवालिक की ऊंची पहाड़ियों के बीच बहने वाली चेनाब नदी पर भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल बना रहा है। ये रेल पुल दुनिया भर में अपने वास्तु और अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर फ्रांस की राजधानी पेरिस में बने एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा होगा। इतना ही नहीं ये पुल दिल्ली के कुतुबमीनार से करीब 5 गुना ऊंचा होगा। रेलवे के मुताबिक चेनाब नदी पर बन रहे इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर होगी। ये पुल 1315 मीटर लंबा होगा और इसकी चौड़ाई 13.5 मीटर होगी। इस बेजोड़ पुल को बनाने में 25 हजार मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल होगा। रेलवे के तमाम अफसर और सैकड़ों मजदूर दिन-रात इस पुल को बनाने में जुटे हैं। रेलवे के मुताबिक फिलहाल इस पुल का काम 70 फीसदी पूरा हो चुका है और उम्मीद जताई जा रही है कि दिसंबर 2018 तक यह पुल पूरी तरह बन कर तैयार हो जाएगा। इस पुल को बनाने में करीब 1198 करोड़ रुपए खर्च होंगे। शिवालिक की पहाड़ियों के बीच बन रहे इस पुल की ऊंचाई, इसकी डिजाइन और इसे बनाने में इस्तेमाल इंजीनियरिंग को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि तैयार होने के बाद ये पुल इंसानी कारीगरी का नायाब नमूना होगा, जिसकी मिसाल सदियों तक दुनिया भर में दी जाएगी।

क्या है उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना      चेनाब नदी पर बन रहा ये पुल उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना का सबसे अहम हिस्सा है। ये पुल जम्मू को श्रीनगर से जोड़ेगा। इस लिहाज से इस पुल की अहमियत बहुत ज्यादा है। उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक परियोजना को चार भागों में बांटा गया है।    
1.पहला है उधमपुर से कटरा तक का रेल रूट, जो 25 किलोमीटर लंबा है। जुलाई 2014 में ये रेल रूट पूरा हो चुका है और इस पर ट्रेनों की आवाजाही शुरू हो चुकी है।
2.दूसरा है कटरा से बनिहाल का रेलवे रूट, जो कि 111 किलोमीटर लंबा होगा। चेनाब नदी पर बन रहा सबसे ऊंचा पुल इसी रूट का हिस्सा है। रेलवे के मुताबिक यह रूट 2021 तक पूरी तरह तैयार हो जाएगा।
3.तीसरा है बनिहाल से काजीगुंड का 18 किलोमीटर लंबा रास्ता जो कि जून 2013 में बनकर तैयार हो चुका है और इस रुट पर भी ट्रेन दौड़ने लगी है।
4.चौथा है काजीगुंड से बारामुला का 118 किलोमीटर का हिस्सा। ये रूट भी  2009 में ही पूरा हो चुका है

चेनाब पुल के फायदे      
 रेलवे के इस पुल के बन जाने से जम्मू-कश्मीर देश के बाकी हिस्सों से हर मौसम में 12 महीने जुड़ा रह पाएगा, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी की वजह से अक्सर सड़क मार्ग बंद हो जाता है और श्रीनगर समेत कश्मीर के कई इलाके देश से कट जाते हैं। साथ ही चेनाब पुल के बनने के बाद जम्मू से श्रीनगर आने-जाने में 4 से 5 घंटे का वक्त कम लगेगा। ऐसे में इस पुल के बन जाने से कश्मीर के पर्यटन को तो बढ़ावा मिलेगा ही, वहां रह रहे लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। रेलवे ने इस परियोजना के लिए जिन लोगों की जमीन 75 फीसदी से ज्यादा अधिग्रहीत की है, उनके परिवार में एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी गई है। इतना ही नहीं परियोजना में काम करने वाले लोगों को चेनाब तक पहुंचाने के लिए रेलवे ने 200 किलोमीटर लंबी सड़क भी तैयार की है, जो कि इस रेल लाइन के शुरू होने के बाद स्थानीय लोगों के आने-जाने के काम भी आएगी।

4.अंतरिक्ष की लंबी यात्रा – बैलगाड़ी पर रॉकेट ले जाने से लेकर मंगल तक   
उच्च-तकनीक वाले सबसे वजनी भू-स्थैतिक संचार उपग्रह, जी-सैट-19 को 05 जून को जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर कक्षा में सफलतापूर्वक छोड़े जाने के बाद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में एक बड़ी सफलता हासिल की है। इस उपग्रह को सबसे शक्तिशाली देसी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-III द्वारा छोड़ा गया।

जीएसएलवी मार्क-III 18 दिसंबर, 2014 को पहली प्रायोगिक उड़ान के साथ एक प्रोटोटाइप क्रू कैप्सूल ले गया था। उपकक्षीय मिशन ने वैज्ञानिकों की यह समझने में मदद की कि यह यान वायुमंडल में कैसे काम करता है। साथ ही कैप्सूल का परीक्षण भी किया गया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए इस वर्ष यह तीसरी उपलब्धि थी। इसने खुद के किफायती लेकिन प्रभावी क्रायोजनिक इंजन और अंतरिक्ष में 36,000 किलोमीटर पर कक्षा में 4 हजार किलोग्राम तक के भारी भरकम भू-स्थैतिक उपग्रहों को विकसित करने की देश की चाहत को पूरा किया।

इससे पहले 05 मई को भारत ने संचार सुविधा को बढ़ाने और पहला दक्षिण-एशिया उपग्रह (एसएएस) छोड़कर अपने 6 पड़ोसियों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका को अनमोल तोहफा दिया था। 2,230 किलोग्राम के संचार अंतरिक्ष यान ने क्षेत्र में नए द्वार खोल दिए और भारत को अंतरिक्ष कूटनीति में अपने लिए अनोखा स्थान बनाने में मदद की।

इसरो द्वारा निर्मित और भारत द्वारा पूरी तरह वित्तपोषित, भू-स्थैतिक संचार उपग्रह-9 (जीसैट-9) अपने साथ जीएसएलवी-एफ09 रॉकेट ले गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे अभूतपूर्व विकास बताते हुए एक संदेश में कहा कि जब क्षेत्रीय सहयोग की बात आती है तो आकाश भी कोई सीमा नहीं है।

पृथ्वी की कक्षा में कार्टोसेट-2 श्रृंखला के उपग्रह सहित रिकॉर्ड-104 उपग्रहों के लिए पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी सी-37) का इस्तेमाल करने के बाद फरवरी में अंतरिक्ष एजेंसी दुनियाभर में सुर्खियों में आ गयी थी। इस मास्टर स्ट्रोक ने भारत को छोटे उपग्रहों के लिए प्रक्षेपण सेवा प्रदात्ता के रूप में स्थापित कर दिया।

इन उपलब्धियों ने अंतरिक्ष की दौड़ में इसरो के लिए एक विशिष्ट स्थान बना दिया। प्रधानमंत्री के अंतरिक्ष प्रेम और इसरो से उनका जुड़ाव अंतरिक्ष विभाग के लिए इस वर्ष के बजट में भी दिखाई दिया जिसमें भारी 23 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी की गयी। वर्षों से चल रहा भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय अऩिवार्यता, और लोगों की सामाजिक और आर्थिक भलाई के लिए चल रहा है। भारत अपने उपग्रहों का इस्तेमाल विशेष रूप से विकास संबंधी उद्देश्यों – नागरिक (पृथ्वी की निगरानी, रिमोट सेंसिंग, संचार, मौसम विज्ञान) और रक्षा उद्देश्यों के लिए करता है। इसमें पर्यावरण अवकर्षण, भूमि का कटाव, मछली पकड़ने के संसाधनों पर निगरानी, बाढ़ और सूखे पर निगरानी, खनन, खनिज विज्ञान संबंधी संसाधनों का सर्वेक्षण और वन्य जन्तु पार्कों के लिए भूमि की कवरेज का पता लगाना शामिल है। अंतरिक्ष आधारित एप्लीकेशनों जैसे टेली-शिक्षा और टेली-मेडिसन ने इन आधारभूत जरूरतों तक ग्रामीण आबादी की पहुंच बढ़ा दी है।

पिछले तीन वर्षों के दौरान भारत अपने अंतरिक्ष मिशन में तेजी लाया है। 2016 की करीब दर्जनभर उपलब्धियों में दिसम्बर में रिमोर्ट सेंसिंग उपग्रह रिसोर्ससैट-2 के सफलतापूर्वक कार्य करने और जून में अकेले अंतरिक्ष उपग्रह में 20 उपग्रहों, 3 नेवीगेशन उपग्रहों और जीसैट-18 संचार उपग्रहों का रिकॉर्ड प्रक्षेपण शामिल है।

2015 में इसरो ने नवंबर में जीसैट-15 संचार उपग्रह और सितम्बर में मल्टी वेवलेंथ स्पेस ऑब्जरवेटर एस्ट्रोसेट छोड़ा। स्वदेश में विकसित उच्च प्रक्षेपक क्रायोजनिक रॉकेट इंजन का 800 सेकेंड के लिए जमीनी परीक्षण किया गया। इसके अलावा पीएसएलवी द्वारा जुलाई में पांच उपग्रह और मार्च में भारतीय क्षेत्रीय नेवीगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) में चौथा उपग्रह  आईआरएनएसएस-1डी छोड़ा गया।

2014 में संचार उपग्रह जीसैट-16 दिसंबर में छोड़ा गया और कक्षा में स्थापित किया गया। आने वाले वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों ने उपग्रह प्रक्षेपण की श्रृंखला तैयार कर रखी है। अगली प्रमुख परियोजना भारत का चंद्रमा पर दूसरा अन्वेषण मिशन, चंद्रयान-2 भेजना है। इसके चंद्रमा की धरती का खनिज विज्ञान संबंधी और तात्विक अध्ययन करने की उम्मीद है। इसे 2018 की पहली तिमाही में छोड़ने की तैयारी है। 10 वर्ष पूर्व चंद्रयान-1 सफलतापूर्वक छोड़ा गया था।

इसरो की अगली बड़ी योजना सौर प्रभामंडल (कोरोनाग्राफ के साथ – एक टेलीस्कोप), फोटोस्फेयर, वर्णमण्डल (सूर्य की तीन प्रमुख बाहरी परतें) और सौर वायु का अध्ययन करने के लिए सूर्य में वैज्ञानिक मिशन भेजना है। श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-एक्सएल द्वारा इसे 2020 में छोड़ा जाना है। आदित्य-एल1 उपग्रह कक्षा से सूर्य का अध्ययन करेगा जो पृथ्वी से करीब 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर है।  

आदित्य-एल1 मिशन इस बात की जांच करेगा कि क्यों सौर चमक और सौर वायु पृथ्वी पर संचार नेटवर्क और इलेक्ट्रॉनिक्स में बाधा पहुंचाती है। इसरो की उपग्रह से प्राप्त उन आंकड़ों का इस्तेमाल करने की योजना है ताकि वह गर्म हवा और चमक से होने वाले नुकसान से अपने उपग्रहों का बेहतर तरीके से बचाव कर सके।

जल्द ही भारत पहली बार शुक्र ग्रह का भी उपयोग करेगा और संभवतः 2021-2022 के दौरान दूसरे मंगल ओर्बिटर मिशन के साथ लाल ग्रह पर लौटेगा। उसकी मंगल की धरती पर रोबोट रखने की योजना है।

भारत की अंतरिक्ष यात्रा 53 वर्षों का सफर पूरा कर चुकी है। देश ने पहली बार 21 नवंबर 1963 को केरल में मछली पकड़ने वाले क्षेत्र थुंबा से अमेरिकी निर्मित दो-चरण वाला साउंडिंग रॉकेट (पहला रॉकेट) ‘नाइक-अपाचे’ का प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष पर पहला हस्ताक्षर किया।

चूंकि तिरुअनंतपुरम के बाहरी हिस्से स्थित थुंबा भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन पर कोई इमारत नहीं थी इसलिए बिशप के घर को निदेशक का कार्यालय बनाया गया, प्राचीन सेंट मैरी मेगडलीन चर्च की इमारत कंट्रोल रूम बनी और नंगी आंखों से धुआँ देखा गया। यहाँ तक की रॉकेट के कलपुर्जों और अंतरिक्ष उपकरणों  को प्रक्षेपण स्थल पर बैलगाड़ी और साइकिल से ले जाया गया था।

इसके करीब 12 वर्ष बाद भारत ने अपने पहले प्रायोगिक उपग्रह आर्यभट्ट के साथ अंतरिक्ष युग में प्रवेश किया जिसे 1975 में रूसी रॉकेट पर रवाना किया गया। इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. यू.आर.राव ने एक इंटरव्यू में बताया कि उन दिनों बुनियादी ढांचा उपलब्ध नहीं था। जो कुछ उपलब्ध था हमने उसका इस्तेमाल किया। यहाँ तक की हमने बैंगलोर में एक शौचालय को डेटा प्राप्त करने के केंद्र में तब्दील कर दिया।

थुंबा से सफर शुरू करने से लेकर भारत का अंतरिक्ष सफर काफी आगे निकल चुका है। भारत ने चंद्रमा संबंधी अनुसंधान शुरू करने, उपग्रह बनाने, अन्य के लिए भी, विदेशी उपग्रहों को ले जाने और मंगल तक पहुंचने में सफलता अर्जित कर दुनियाभर में अपनी पहचान बना ली है।  

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